Friday 17 April 2015

भगवान गुरु गोरक्षनाथ: देवी-देवताओं के रक्षक

भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी को नाथशिरोमणि, नाथ पंथ के संस्थापक और नाथ पंथ के प्रथम गुरु के स्वरुप में सम्पूर्ण विश्व में जाना जाता है। गोरक्ष नाम का अर्थ है गौ रक्षक अर्थात जिनका जन्म किसी स्त्री के गर्भ से नहीं हुआ जो स्वयं ही गौशाला में प्रकट हुए। गोरक्ष अर्थात जो गौ के रक्षक हैं। गौ में हिन्दू मान्यता के अनुसार तेतीस कोटि देवी-देवताओं का निवास है। इस आधार पर भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी को तेतीस कोटि देवी-देवताओं का रक्षक भी माना जाता है।
भगवान गुरु गोरक्षनाथ के जन्म से जुड़ी अनेकों कथाएं हैं किन्तु जन्म उसका होता है जो स्त्री के गर्भ से संसार में आए। उदहारण के तौर पर भगवान राम और भगवान कृष्ण भगवान गुरु गोरक्षनाथ साक्षात पृथ्वी पर प्रकट हुए 12 वर्ष के बालयोगी के स्वरुप में। भगवान शिव पृथ्वी पर अवतार नहीं लेते। भगवान शिव को साक्षात धर्म का प्रतीक माना गया है। धर्म की रक्षा और स्थापना के लिए भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतार लेते हैं। भगवान शिव के स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद दिया और 12 ज्योति के स्वरुप में सदा पृथ्वी पर उनका निवास है।
एक सरोवर के किनारे भगवान शिव माता उमा को योग की शिक्षा दे रहे थे। माता उमा को निद्रा ने अपने आवेश में ले लिया और उमा सो गई। सरोवर में एक मछली के गर्भ में एक बालक पल रहा था जिसने वह सारा ज्ञान जो भगवान शिव माता उमा को दे रहे थे सुन लिया। भगवान शिव ने देखा उमा तो निद्रा में हैं तो कौन है वो जो सम्पूर्ण ज्ञान को ग्रहण कर चूका है और जो हमारे पूछने पर "हां" में उत्तर दे रहा है।भगवान शिव ने अपनी त्रिकाल दृष्टि से देखा की एक मछली के गर्भ में एक बालक है जो अब ब्रह्म ज्ञानी बन गया है। भगवान शिव की कृपा से वह बालक मछली के गर्भ से मुक्त हुआ और भगवान शिव ने उसको अपने शिष्य के स्वरुप में स्थान दिया। वही बालक नाथ पंथ में गुरु मछिंदरनाथ जी के नाम से प्रख्यात हुआ।
भगवान शिव ने अपने शिष्य मछिंदरनाथ को आदेश दिया की जिस योग विद्या को उन्होंने ग्रहण किया है उसको संसार में बाटें।  गुरु मछिंदरनाथ जब संसार में गए उन्होंने वहां पाप को सर्वाधिक पाया।  हर प्राणी का मन काम, क्रोध, लोभ, मोह, तामस और अभिमान में आसक्त था। गुरु मछिंदरनाथ ने अपने गुरु भगवान शिव को पुकारा और कहा आपने जो मुझको कार्य दिया मैं उसको करने में असमर्थ हूं। भगवान शिव ने अपने शिष्य के प्रेम को देखते हुए स्वयं पृथ्वी पर जाने का निश्चय किया।
गुरु मछिंदरनाथ योगी के रूप में गांव-गांव भ्रमण करने लगे। एक दिन वो एक स्थान पर पहुंचे जहां उन्होंने चमत्कार दिखाए। गांव में निवास करने वाली एक स्त्री  को संतान प्राप्ति की इच्छा योगी मछिंदरनाथ तक ले आई। गुरु मछिंदरनाथ ने स्त्री को विभूति दी और पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। स्त्री जब अपने घर पहुंची तो उसके पति ने कहा क्यों इन बाबा लोगों पर विश्वास करती हो और विभूति को गौशाला में फेंक दिया। स्त्री को बड़ा ही दु:ख हुआ। 12 वर्ष के पश्चात् गुरु मछिंदरनाथ उस गांव में आए  वह स्त्री भी गुरु मछिंदरनाथ से मिलने आई। गुरु मछिंदरनाथ ने उस स्त्री को पहचान लिया और पुछा कैसा है, "तुम्हारा पुत्र !" 
स्त्री ने अपनी दुखत घटना को गुरु मछिंदरनाथ जी को बताया।
गुरु मछिंदरनाथ बोले, "हमको उस गौशाला की ओर ले जाओ जहां विभूति को फेंक था।  गुरु मछिंदरनाथ उस स्त्री और गांव के अन्य लोगों के साथ उस स्थान पर पहुंचे जहां वो गौशाला थी।"
गुरु मछिंदरनाथ बोले, "अलख निरंजन" ! 
गौशाला से आवाज़ आई, "आदेश गुरु का" !
एक 12 वर्ष का बालक वहां पर प्रकट हुआ। गुरु मछिंदरनाथ जी ने कहा क्यों की यह बालक गौशाला से प्रकट हुआ है और 12 वर्ष तक स्वयं गौ माता ने इसकी रक्षा और पालन पोषण किया है इसलिए इस बालक का नाम "गोरक्ष" रखता हूं। यही बालक गुरु मछिंदरनाथ जी के प्रथम शिष्य के स्वरुप में सम्पूर्ण विश्व में विख्यात होगा।
स्त्री रोने लगी और बोली, "मेरा पुत्र मुझको दे दो।"
गुरु मछिंदरनाथ बोले,"पुत्र वह होता जो तुम्हारे गर्भ से जन्म लेता। यह तो अजन्मा हैं। यह तो स्वयं भगवान शिव हैं जिन्होंने मेरे प्रेम को स्वीकार किया और योग के प्रचार के लिए स्वयं ही मेरे शिष्य के स्वरुप में प्रकट हुए हैं।"
जिस जगह पर भगवान गुरु गोरक्षनाथ प्रकट हुए उस स्थान को भारत देश में गोरखपुर के नाम से जाना जाता है तत्पश्चात भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपने गुरु मछिंदरनाथ जी के साथ नाथ पंथ की स्थापन की। किस युग में और किस काल में भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने नाथ पंथ की स्थापना करी आज तक कोई भी नहीं जान पाया।
इसका कारण यह भी हो सकता है की भगवान गुरु गोरक्षनाथ कोई अवतार नहीं स्वयं भगवन शिव हैं जो अपने शिष्य मछिंदरनाथ की मदद: नाथ पंथ के निर्माण करने के लिए ही आए इसलिए उनकी माता कौन हैं और पिता कौन हैं आज तक कोई जान नहीं पाया। नाथ पंथ में नवनाथ और चौरासी महासिद्धों का निर्माण भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने ही किया।
लोगों का यह भी मानना हैं की भगवान गुरु गोरक्षनाथ 11विं शताब्दी के योगी हैं ! राजा भर्तहरि जो पहली शताब्दी में उज्जैन नगरी के राजा थे भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने। उसी प्रकार बप्पा रावल जिन्होंने 8विं शताब्दी में राजस्थान की लड़ाई लड़ी वह भी भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी के शिष्य थे। ऐसे कितने ही उल्लेख इतिहास में मिलते हैं जो यह बताते हैं भगवान गुरु गोरक्षनाथ 11विं शताब्दी के योगी नहीं हैं और यह धारणा पूर्ण रूप से गलत हैं। आदि गुरु शंकराचार्य की लिपियों में भी भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी का उल्लेख मिलता है। 
भगवान वेद व्यास जिन्होंने द्वापर युग में 18 पुराणों को लिखा उन्होंने भी स्कन्द पुराण, ब्रह्म पुराण और शिव पुराण में भगवान गुरु गोरक्षनाथ का उल्लेख किया है। कितने ही राजा, योगी, साधु, संत भगवान गुरु गोरक्षनाथ के भक्त और शिष्य थे। मृत्यु जीवन का अटल सत्य है। जो संसार मेँ आया है उसको एक दिन जाना ही है।जिसने जन्म लिया वो एक दिन निश्चित स्वरुप से अपने शरीर का त्याग करेगा।भगवान गुरु गोरक्षनाथ जिन्होंने स्त्री के गर्भ से जन्म नहीं लिया और साक्षात शिव हैं सदा इस पृथ्वी पर एक महायोगी के स्वरुप में निवास करते हैं।

मुख्य रूप से भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी को दो कार्यों के लिए जाना जाता है। भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने नाथ पंथ की स्थापना की और हठ योग का निर्माण किया। भगवान गुरु गोरक्षनाथ द्वारा लिखी गई दो पुस्तकें भी प्रचलित हैं। गोरख बानी और सिद्ध सिद्धांत पद्धति वह दो पुस्तकें हैं जो हर नाथ पंथ से जुड़ा व्यक्ति पढऩे की इच्छा रखता है। इसके अतिरिक्त भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी ने शाबर तंत्र का भी निर्माण किया जन जन की मदद करने के लिए। सभी तंत्रों का आधार भी भगवान शिव ही माने गए हैं।

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