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Saturday 25 April 2015

नागपंचमी पर्व : नागदेव को दूध न पिलाएं क्योंकि..

भारतीय संस्कृति में धार्मिक मान्यताओं के आधार पर अग्नि, सूर्य, सर्प व पितर का सर्वाधिक महत्व है। नागपंचमी के दिन उपवास रखकर पूजन करना सर्व कल्याणकारी माना गया है

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नागपंचमी के पर्व को लोग बड़ी श्रद्धा और आस्‍था से मनाते आ रहे हैं। महाकाल की इस नगरी में राजाधिराज स्वयं बाबा महाकाल का वास है। महाकाल की नगरी में नागदेव के पूजन का अपना अलग ही महत्व है।

पढ़ेपूजन विधि

नागपंचमी पर्व के इस दिन स्नान करके गोबर से नाग बनाए जाते हैं। मुख्य द्वार के दोनों ओर दूध, दूब, कुशा, चंदन, अक्षत, पुष्प आदि से नागदेव का पूजन किया जाता है। पुराणों के अनुसार दूध से सर्प को स्नान कराने से सर्प भय से मुक्ति मिलती है। देश के अलग-अलग प्रांतों में नागदेव की अलग-अलग तरह से पूजन संपन्न की जाती है।

पूजन सामग्री :

नागपंचमी के पर्व पर नागदेव के पूजन बांबी से लाई गई मिट्टी में चने, या गेहूं की धानी, ककड़ी, दूध, अक्षत, हल्दी, कूंकू इत्यादि संपन्न किया जाता है। नाग प्रतिमा का दूध, दही, घृत, मधु का पंचामृत बनाकर स्नान कराना चाहिए। इसके बाद चंदन, गंध से युक्त जल चढ़ाना चाहिए।

नागदेव को दूध को नहीं पिलाने की अपील

विशेषज्ञॅसर्प को दूध पिलाना गलत बताया गया है। उनके अनुसार सर्प के लिए दूध हानिकारक होता है, जबकि भारतीय पौराणिक परंपराओं के अनुसार वर्षों से नागदेव को लोग दूध पिलाते आ रहे हैं। विगत 2-3 वर्षों से नागदेव को दूध न पिलाने की अपील की जा रही है। इसको कुछ लोग उचित मान रहे हैं तो कई लोगों का कहना है कि इस तरह की नई-नई वैज्ञानिक बातों को लाकर लोगों की श्रद्धा व आस्थाओं के साथ धोखा किया जा रहा है जिससे हमारी भारतीय संस्कृति की परंपराओं को नष्ट करने की योजना है।

सपेरों पर रहेगी नजर

नागपंचमी के पर्व के दिन शहर की तमाम गलियों में 'सांप को दूध पिलाओ' की आवाजें सुनाई देती थीं, जो कि आजकल सुनाई नहीं देती हैं। प्रशासन द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि बड़ी ही बेरहमी व अमानवीय तरीके से सांपों के दांतों व इसके विष को निकालने से इसका असर सर्प के फेफड़ों पर होने से कुछ दिन बाद इनकी मृत्यु हो जाती है और दांत निकालते समय 80 प्रतिशत सर्प मर जाते हैं। इस कारण वन विभाग की टीम द्वारा सपेरों पर सख्ती से नजर रखी जाएगी।

घरों में बनती है दाल-बाटी

नागपंचमी पर्व की एक पौराणिक मान्यता है कि इस दिन लोग अपने रसोईघरों के चूल्हों पर तवा नहीं रखते हैं। इस कारण पूरे मालवांचल के प्रत्येक घर में दाल-बाटी का ‍अधिक प्रचलन है।

नागदेव के पूजन से लाभ

नागदेव के पूजन करने व इनके मंत्रों के जाप करने से कभी-कभी घर में सर्प प्रवेश नहीं करता है। नागदेव के मंत्र 'ॐ कुरु कुल्ले हुं फट स्वाहा' के जाप से नागदेव प्रसन्न होते हैं और काटने से मृत्यु नहीं होती है। यदि मृत्यु हो भी जाए तो उसे मुक्ति मिलती है।

Wednesday 22 April 2015

पवित्र माघ मास का माहात्म्य

भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चन्द्रमास और दसवां सौरमास माघ कहलाता है। इस महीने में मघा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा। धार्मिक दृष्टिकोण से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्ग लोक में जाते हैं - 

'माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।'
पद्मपुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए। 
                        'प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापानुत्तये। माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः॥'
माघ मास में पूर्णिमा को जो व्यक्ति ब्रह्मावैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा सुननी चाहिए यह संभव न हो सके तो माघ महात्म्य अवश्य सुनें। अतः इस मास में स्नान, दान, उपवास और भगवान माधव की पूजा अत्यंत फलदायी होती है। माघ मास की अमावास्या को प्रयागराज में स्नान से अनंत पुण्य प्राप्त होते हैं। वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।