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Tuesday 14 April 2015

संत कबीर के भजन : राम बिनु

राम बिनु तन को ताप न जाई।
जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम जलनिधि मैं जलकर मीना।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा।
दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला।
कहै कबीर राम रमूं अकेला॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

Wednesday 8 April 2015

झीनी झीनी बीनी चदरिया

झीनी झीनी बीनी चदरिया॥ टेक॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी
कौन तार से बीनी चदरिया॥1॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी
सुखमन तार से बीनी चदरिया॥ 2॥
आठ कंवल दल चरखा डोलै
पांच तत्व गुन तीनी चदरिया॥ 3॥
सां को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया॥4॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी
ओढि कै मैली कीनी चदरिया॥5॥
दास कबीर जतन करि ओढी
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया॥6॥

मन लाग्यो मेरो यार

मन लाग्यो मेरो यार
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
जो सुख पाऊं राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
भला बुरा सब का सुनलीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
आखिर यह तन छार मिलेगा
कहां फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥