Friday 17 April 2015

साईं चालीसा

पहले साईं के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं।
कैसे शिरडी साईं आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥
कौन है माता, पिता कौन है, ये न किसी ने भी जाना।
कहां जन्म साईं ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना॥
कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान हैं।
कोई कहता साईं बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं॥
कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानंद हैं साईं।
कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नंदन हैं साईं॥
शंकर समझे भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते।
कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साईं की करते॥
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साईं हैं सच्चे भगवान।
बड़े दयालु दीनबंधु, कितनों को दिया जीवन दान॥
कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात।
किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात॥
आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुंदर।
आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर॥
कई दिनों तक भटकता, भिक्षा मांग उसने दर-दर।
और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर॥
जैसे-जैसे उमर बढ़ी, बढ़ती ही वैसे गई शान।
घर-घर होने लगा नगर में, साईं बाबा का गुणगान॥

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